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Anurag Pandey जी के कलम से🖋 थोड़ा समय निकाल कर जरूर पढ़िए। #कुछ_पल_के_लिए_आपको_भाउक_कर_देगी😢 #छठ_पूजा #प्रदेश चल उड़ जा रे पंक्षी की ये देश हुआ बेगाना। पिछले सप्ताहिक छुट्टी के दिन चलते - चलते कदम अचानक रुक से गए,मानो अरसे का थकान और अनकही दस्तानों ने कहा कुछ देर रुक के ये बातें सुन भी लो और पैरों को आराम भी दे दो।बातें जो अमूमन 5000 किलोमीटर दूर लगभग हर व्यक्ति अपने परिवार जन से करता ही है।और शायद उन बातों को नहीं भी सुनना चाहिए था। पार्क जाते समय रास्ते में एक्सचेंज मिलता है,वही एक्सचेंज जिससे बिहार के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में 7-8 हजार करोड़ का रेमिटेंस गल्फ से हर साल होता है।एक्सचेंज के पास एक व्यक्ति गुलाबी रंग का मटमैला शर्ट, कॉफी रंग का पैंट,पैर में प्लास्टिक का चप्पल,कंधे पर बिहार के आन - बान शान का प्रतीक चुनरिया गमछा और नीचे वाले होठ के दाहिने साइड खैनी को दबाए,एक हाथ कमर पर तो दूसरे हाथ से मोबाईल को कान में सटाय शायद अपनी बीबी से बातें कर रहा था।हमें उस व्यक्ति की बातें खड़े होकर सुनना नहीं चाहिए था लेकिन पता नहीं क्यों उसकी बातें ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण शक्ति की तरह अपने में समेट लिया। हेल्लो,अरे!!हम शिवनारायण बोलतानी, शिवनारायण ओमान से,शायद उधर से प्रणाम बोला गया होगा तो इन्होंने ने भी बोला खुश रहो,का हाल,बाल - बच्चा कैसन है??अम्मा केने है??बाबूजी का आंख कैसा है!!तुम ठीक तो हो??उधर से जवाब क्या मिला होगा लेकिन शिवनारायण के चेहरे की झलक ये बता रही थी कि सब कुशल - मंगल है।उधर से पूछा गया होगा कि तुम ठीक तो हो??इनका जवाब था कि हां सब इधरो ठीके है। शिवनारायण फिर कहते हैं,सुनो हऊ जवन गोपालगंज जा के कचहरी पासे स्टेट बैंक में खातवा नहीं खोलवाय थे,हमर आऊर तोहार एके साथ,ओहि के खतावा में पैसवा भेज दिए हैं, मोबईलवा पर मेसेज गया होगा, तुम देख लो, एक बार कनफरम हो जाओ फेरू फोन मिलाते हैं।शायद उधर से उनकी बीबी बोली होगी की हमको देखे नहीं आवत है,सुधीर से शाम के चेक करवा लेंगे।सुधीर का, का जरूरत है तुम कब सिखोगी,तुमसे तो ई सब चक्कर में बाते करना बेकार है।ठीक है कवनो बात नहीं पइसवा चाला ही गया होगा।तभी उधर से फिर किसी ने प्रणाम बोला होगा फिर उन्होंने बोला खुश रहो बेटा,कैसन हो तुम,अा पढ़ाई - लिखाई हो रहा है कि ना,हो रहा है!! अच्छा!!तनिक 21 का पहाड़ा सुनाओ तो,21 का नहीं आता है!! 20 तक ही आता है!!,अच्छा कवनों बात ना सीख लेना,अा सुनो अंग्रेज़ी का बड़ा मांग है, इसपेलिंग याद करना और किसी को परेशान नहीं करना,हां बेटा ??नहीं ,नहीं अा पावेंगे,भयरस जादा बढ़ गया है,जहाज़ नहीं चल रहा है।अच्छा कब है जन्मदिन??27 को!!ठीक है पईसवा भेज दिए हैं,मा से बोल के जो बुझाए खरिदवा लेना।अच्छा!!मम्मी को फोनवा तनिक दो। हां हेलो,सुन जे एकरा पसंद पड़े,जीन्स, जामा खरीद देना,मिठाई घरवे बना लेना,कथा भी सुन लेना, दू - चर ठो पट्टी - पट्टीदार में जेकरा मन,बुला के खाना खिला देना।माय के कहना चिंता ना करीहे,बाबूजी का ख्याल रखना और सबकरा के गरम पानी,काढ़ा आऊर गरम खाना ही देना।बाबूजी आउर अम्मा के जीमदारी तोहरे ऊपर है।ब्याजवा वाला पइसा भी बाबूजी के हाथे भेजवा देना,चलो अब रखते हैं पइसा ढेर उठ रहा है।ठीक से रहना,हा खुश रहो। फोन रखने के उपरांत शिवनारायण का ध्यान हमारे तरफ गया,हम मुंह घुमा लिए की उनको पता नहीं पड़े की हम उनकी बात सुन रहे थे,फिर हम उनके तरफ घूम कर उनको देखने लगे,तब उन्होंने पूछा का भाई जी का कुछ कह रहे हैं।हम बोले नहीं,उन्होंने कहा अरे बताइए,हम पूछे कहा घर है बोले आमावा विजयीपुर,गोपालगंज।उन्होंने पूछा आपका ,हम कहे सीवान।अचानक उन्होंने कहा कि बड़ा देर से आप हमारा बात सुन रहे थे।हम बोले ना ऐसे ही,बात आगे बढ़ी फिर उन्होंने कहा कि 1.5 साल हो गया घर से आए हुए, भायरास का चक्कर केतना बढ़ गया है। वैसहू दू साल पर जाते हैं,साफ - सफाई का काम करते हैं,कहां से एतना पैसा!!!बेटा का जन्मदिन था तो मुदिर ( मालिक) से 50 रियाल मतलब 9500 रुपया मांगे अडवानस।जिसको घर भेजने में ही 500 रुपया लग गया होगा।हम पूछे वहीं कवनों काम काहे नहीं कर लेते।अतना काम तनख्वाह में आए हैं?? घरे कहा से काम,बिहार में का हईए है,नरक है,हमको 15 साल हो गया घर छोड़े। अब छूट गया बिहार।छूट गया बिहार!!! शिवनारायण से बात करते हुए लग रहा था कि शिवनारायण के अंदर कितना कुछ है और आज,अभी ही कह दे!!शायद कोई और सुनने वाला ना मिले।ऐसा मुझे भी कई बार लगता है।उनकी बातों को सुनने के बाद उनके कंधे पर हाथ रख कर बोला,कंधे पर हाथ का भाव समझते ही शिवनारायण का चेहरा सूर्यमुखी के फूल जैसा खिल गया।हम बोले, भईया एक ही जवार के हैं हमलोग कभी - कुछ ऐसा लगे तो बेझिझक इस नंबर पर फोन कीजिएगा। मन में सोचा *** तेरा खुद का ठिकाना है!!! छूट गया बिहार!!!ये सुन हमारे अंदर एक अलग तरीके का कम्पन हुआ और खुद से पूछा सच में छूट गया बिहार।जबाव आया और खींच के 90 के दशक में लेकर चला गया।सच में छूट गया बिहार,दसवीं के बाद जब घर से निकले। छूट गया बिहार उन यादों में जिसमें पिताजी की मच्छरदानी लगाते हुए पहाड़ा को जोर - जोर से पढ़ना,उस याद में जिसमे पिताजी अक्सर डांट में कहा करते थे कि इस नरक से निकलना है तो पढ़ना पड़ेगा आऊर कवनो उपाय नहीं है।उन यादों में जिसमें किसी रिश्तेदार के आने पर मा पीछे के दरवाजे से बिस्कुट खरीद को लाने को कहती थी,उन यादों में जिसमें एक रुपए में भी दशहरा के मेले को खरीदने की क्षमता होती थी,छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ की गेंहू छत पर सुखाते हुए पहरेदारी के लिए मा कहती थी कि देखना कोई चिड़िया भी गेहूं को जूठा ना करे,उस याद में जब छठ में ठेकुआ छानते मा कहती थी कि चलो इधर से भागो,अभी नहीं खाने का,पूजा के बाद खाने का, फिर भी जिद करना, ए मा एक दे दो।छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ घाट पर बैठ अपने दिए को तालाब में डाल पानी उड़ेलते थे कि दिया कितना दूर जा रहा है,छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ पूजा के अगले दिन गन्ने को चूसते वक्त,गन्ने के ऊपर के छिलके के सबसे लंबा छिलना और सबको दिखाना की देखो कितना लंबा छीला हूं। छठ पूजा के बाद का सूनापन भी अभी के सूनापन के तुलना में एक अलग सुखद संयोग होता था।अक्सर परदेशी जब छठ पूजा के बाद घर से जाते थे तो दादी एक लाइन गाती थी "चल उड़ जा रे पंक्षी की ये देश हुआ बेगाना"। दसवीं के बाद जब पिताजी बोले कि अब तुम्हारे लिए यहां कुछ नहीं है इस नरक से निकलने की दूसरी सीढ़ी चढ़ने की तैयारी शुरू कर दो।नब्बे के दशक के बच्चे अपने जिंदगी के बचपना में तो सांझ की सुंदरता को देख ही नहीं पाए की सांझ होता कैसे है!!!नब्बे के दशक ने हमसे हमारा बचपन छिना साथ ही साथ हम बिहारियों से बहुत कुछ और भी छीन लिया घर, दुआर,जमीन,संकल्प,संस्कृति,मनोभाव,संवेदना सब!! जिसका भुगतान आज तक हो रहा है।शायद ही अब मिल पाए ठेकुए को छानते हुए ढंग से देखना,उस सौंधी सी खुशबू को ढंग से सूंघना। बस सारी चीजें तस्वीरों तक सिमट कर रह गईं हैं।बिहार अब बचा ही कहां हमारे लिए या बिहार के लिए हम भी कहा बचे!!! ठेकुआ और छठ पूजा।❤️ नमो नमः!! अनुराग पाण्डेय, सीवान,बिहार। #GulfDiaries #BeingBihari #MelancholicStrain


 

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