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Anurag Pandey जी के कलम से🖋 थोड़ा समय निकाल कर जरूर पढ़िए। #कुछ_पल_के_लिए_आपको_भाउक_कर_देगी😢 #छठ_पूजा #प्रदेश चल उड़ जा रे पंक्षी की ये देश हुआ बेगाना। पिछले सप्ताहिक छुट्टी के दिन चलते - चलते कदम अचानक रुक से गए,मानो अरसे का थकान और अनकही दस्तानों ने कहा कुछ देर रुक के ये बातें सुन भी लो और पैरों को आराम भी दे दो।बातें जो अमूमन 5000 किलोमीटर दूर लगभग हर व्यक्ति अपने परिवार जन से करता ही है।और शायद उन बातों को नहीं भी सुनना चाहिए था। पार्क जाते समय रास्ते में एक्सचेंज मिलता है,वही एक्सचेंज जिससे बिहार के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में 7-8 हजार करोड़ का रेमिटेंस गल्फ से हर साल होता है।एक्सचेंज के पास एक व्यक्ति गुलाबी रंग का मटमैला शर्ट, कॉफी रंग का पैंट,पैर में प्लास्टिक का चप्पल,कंधे पर बिहार के आन - बान शान का प्रतीक चुनरिया गमछा और नीचे वाले होठ के दाहिने साइड खैनी को दबाए,एक हाथ कमर पर तो दूसरे हाथ से मोबाईल को कान में सटाय शायद अपनी बीबी से बातें कर रहा था।हमें उस व्यक्ति की बातें खड़े होकर सुनना नहीं चाहिए था लेकिन पता नहीं क्यों उसकी बातें ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण शक्ति की तरह अपने में समेट लिया। हेल्लो,अरे!!हम शिवनारायण बोलतानी, शिवनारायण ओमान से,शायद उधर से प्रणाम बोला गया होगा तो इन्होंने ने भी बोला खुश रहो,का हाल,बाल - बच्चा कैसन है??अम्मा केने है??बाबूजी का आंख कैसा है!!तुम ठीक तो हो??उधर से जवाब क्या मिला होगा लेकिन शिवनारायण के चेहरे की झलक ये बता रही थी कि सब कुशल - मंगल है।उधर से पूछा गया होगा कि तुम ठीक तो हो??इनका जवाब था कि हां सब इधरो ठीके है। शिवनारायण फिर कहते हैं,सुनो हऊ जवन गोपालगंज जा के कचहरी पासे स्टेट बैंक में खातवा नहीं खोलवाय थे,हमर आऊर तोहार एके साथ,ओहि के खतावा में पैसवा भेज दिए हैं, मोबईलवा पर मेसेज गया होगा, तुम देख लो, एक बार कनफरम हो जाओ फेरू फोन मिलाते हैं।शायद उधर से उनकी बीबी बोली होगी की हमको देखे नहीं आवत है,सुधीर से शाम के चेक करवा लेंगे।सुधीर का, का जरूरत है तुम कब सिखोगी,तुमसे तो ई सब चक्कर में बाते करना बेकार है।ठीक है कवनो बात नहीं पइसवा चाला ही गया होगा।तभी उधर से फिर किसी ने प्रणाम बोला होगा फिर उन्होंने बोला खुश रहो बेटा,कैसन हो तुम,अा पढ़ाई - लिखाई हो रहा है कि ना,हो रहा है!! अच्छा!!तनिक 21 का पहाड़ा सुनाओ तो,21 का नहीं आता है!! 20 तक ही आता है!!,अच्छा कवनों बात ना सीख लेना,अा सुनो अंग्रेज़ी का बड़ा मांग है, इसपेलिंग याद करना और किसी को परेशान नहीं करना,हां बेटा ??नहीं ,नहीं अा पावेंगे,भयरस जादा बढ़ गया है,जहाज़ नहीं चल रहा है।अच्छा कब है जन्मदिन??27 को!!ठीक है पईसवा भेज दिए हैं,मा से बोल के जो बुझाए खरिदवा लेना।अच्छा!!मम्मी को फोनवा तनिक दो। हां हेलो,सुन जे एकरा पसंद पड़े,जीन्स, जामा खरीद देना,मिठाई घरवे बना लेना,कथा भी सुन लेना, दू - चर ठो पट्टी - पट्टीदार में जेकरा मन,बुला के खाना खिला देना।माय के कहना चिंता ना करीहे,बाबूजी का ख्याल रखना और सबकरा के गरम पानी,काढ़ा आऊर गरम खाना ही देना।बाबूजी आउर अम्मा के जीमदारी तोहरे ऊपर है।ब्याजवा वाला पइसा भी बाबूजी के हाथे भेजवा देना,चलो अब रखते हैं पइसा ढेर उठ रहा है।ठीक से रहना,हा खुश रहो। फोन रखने के उपरांत शिवनारायण का ध्यान हमारे तरफ गया,हम मुंह घुमा लिए की उनको पता नहीं पड़े की हम उनकी बात सुन रहे थे,फिर हम उनके तरफ घूम कर उनको देखने लगे,तब उन्होंने पूछा का भाई जी का कुछ कह रहे हैं।हम बोले नहीं,उन्होंने कहा अरे बताइए,हम पूछे कहा घर है बोले आमावा विजयीपुर,गोपालगंज।उन्होंने पूछा आपका ,हम कहे सीवान।अचानक उन्होंने कहा कि बड़ा देर से आप हमारा बात सुन रहे थे।हम बोले ना ऐसे ही,बात आगे बढ़ी फिर उन्होंने कहा कि 1.5 साल हो गया घर से आए हुए, भायरास का चक्कर केतना बढ़ गया है। वैसहू दू साल पर जाते हैं,साफ - सफाई का काम करते हैं,कहां से एतना पैसा!!!बेटा का जन्मदिन था तो मुदिर ( मालिक) से 50 रियाल मतलब 9500 रुपया मांगे अडवानस।जिसको घर भेजने में ही 500 रुपया लग गया होगा।हम पूछे वहीं कवनों काम काहे नहीं कर लेते।अतना काम तनख्वाह में आए हैं?? घरे कहा से काम,बिहार में का हईए है,नरक है,हमको 15 साल हो गया घर छोड़े। अब छूट गया बिहार।छूट गया बिहार!!! शिवनारायण से बात करते हुए लग रहा था कि शिवनारायण के अंदर कितना कुछ है और आज,अभी ही कह दे!!शायद कोई और सुनने वाला ना मिले।ऐसा मुझे भी कई बार लगता है।उनकी बातों को सुनने के बाद उनके कंधे पर हाथ रख कर बोला,कंधे पर हाथ का भाव समझते ही शिवनारायण का चेहरा सूर्यमुखी के फूल जैसा खिल गया।हम बोले, भईया एक ही जवार के हैं हमलोग कभी - कुछ ऐसा लगे तो बेझिझक इस नंबर पर फोन कीजिएगा। मन में सोचा *** तेरा खुद का ठिकाना है!!! छूट गया बिहार!!!ये सुन हमारे अंदर एक अलग तरीके का कम्पन हुआ और खुद से पूछा सच में छूट गया बिहार।जबाव आया और खींच के 90 के दशक में लेकर चला गया।सच में छूट गया बिहार,दसवीं के बाद जब घर से निकले। छूट गया बिहार उन यादों में जिसमें पिताजी की मच्छरदानी लगाते हुए पहाड़ा को जोर - जोर से पढ़ना,उस याद में जिसमे पिताजी अक्सर डांट में कहा करते थे कि इस नरक से निकलना है तो पढ़ना पड़ेगा आऊर कवनो उपाय नहीं है।उन यादों में जिसमें किसी रिश्तेदार के आने पर मा पीछे के दरवाजे से बिस्कुट खरीद को लाने को कहती थी,उन यादों में जिसमें एक रुपए में भी दशहरा के मेले को खरीदने की क्षमता होती थी,छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ की गेंहू छत पर सुखाते हुए पहरेदारी के लिए मा कहती थी कि देखना कोई चिड़िया भी गेहूं को जूठा ना करे,उस याद में जब छठ में ठेकुआ छानते मा कहती थी कि चलो इधर से भागो,अभी नहीं खाने का,पूजा के बाद खाने का, फिर भी जिद करना, ए मा एक दे दो।छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ घाट पर बैठ अपने दिए को तालाब में डाल पानी उड़ेलते थे कि दिया कितना दूर जा रहा है,छूट गया बिहार उस याद में जिसमे छठ पूजा के अगले दिन गन्ने को चूसते वक्त,गन्ने के ऊपर के छिलके के सबसे लंबा छिलना और सबको दिखाना की देखो कितना लंबा छीला हूं। छठ पूजा के बाद का सूनापन भी अभी के सूनापन के तुलना में एक अलग सुखद संयोग होता था।अक्सर परदेशी जब छठ पूजा के बाद घर से जाते थे तो दादी एक लाइन गाती थी "चल उड़ जा रे पंक्षी की ये देश हुआ बेगाना"। दसवीं के बाद जब पिताजी बोले कि अब तुम्हारे लिए यहां कुछ नहीं है इस नरक से निकलने की दूसरी सीढ़ी चढ़ने की तैयारी शुरू कर दो।नब्बे के दशक के बच्चे अपने जिंदगी के बचपना में तो सांझ की सुंदरता को देख ही नहीं पाए की सांझ होता कैसे है!!!नब्बे के दशक ने हमसे हमारा बचपन छिना साथ ही साथ हम बिहारियों से बहुत कुछ और भी छीन लिया घर, दुआर,जमीन,संकल्प,संस्कृति,मनोभाव,संवेदना सब!! जिसका भुगतान आज तक हो रहा है।शायद ही अब मिल पाए ठेकुए को छानते हुए ढंग से देखना,उस सौंधी सी खुशबू को ढंग से सूंघना। बस सारी चीजें तस्वीरों तक सिमट कर रह गईं हैं।बिहार अब बचा ही कहां हमारे लिए या बिहार के लिए हम भी कहा बचे!!! ठेकुआ और छठ पूजा।❤️ नमो नमः!! अनुराग पाण्डेय, सीवान,बिहार। #GulfDiaries #BeingBihari #MelancholicStrain


 

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आज केसरिया हिन्दू वाहिनी बिहार प्रदेश नियुक्ती प्रमुख रितिक सिंह जी ने वैक्सीन लगवाया। और देखिए क्या कहा।

 

15 साल से 18 साल की आयु के बीच के जो बच्चे हैं, अब उनके लिए देश में वैक्सीनेशन प्रारंभ होगा। 2022 में, 3 जनवरी को, सोमवार के दिन से इसकी शुरुआत की जाएगी: PM @narendramodi

 

#ये_निर्दोष_बेटियाँ ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा " हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की सिम निकालने की पिन है??" उसने अपने बैग से एक फोन निकाला, वह नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है, जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और अपने क्रॉस बैग से पिन निकालकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी। थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया "कोई परेशानी??" वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा, उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी। लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों?? मैंने कहा " आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है, उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना" लड़की बुदबुदाई "ओह्ह " मैंने दिलासा देते हुए कहा "इसमें कोई परेशानी की कोई बात नहीं" वो अपने एक हाथ से दूसरा हाथ दबाती रही, मानो किसी परेशानी में हो। मैंने फिर विन्रमता से कहा "आपको कहीं कॉल करना हो तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए" लड़की ने कहा "जी फिलहाल नहीं, थैंक्स, लेकिन ये सिम किस नाम से खरीदी गई है मुझे नहीं पता" मैंने कहा "एक बार एक्टिव होने दीजिए, जिसने आपको सिम दी है उसी के नाम की होगी" उसने कहा "ओके, कोशिश करते हैं" मैंने पूछा "आपका स्टेशन कहाँ है??" लड़की ने कहा "दिल्ली" और आप?? लड़की ने मुझसे पूछा मैंने कहा "दिल्ली ही जा रहा हूँ, एक दिन का काम है, आप दिल्ली में रहती हैं या...?" लड़की बोली "नहीं नहीं, दिल्ली में कोई काम नहीं , ना ही मेरा घर है वहाँ" तो ???? मैंने उत्सुकता वश पूछा वो बोली "दरअसल ये दूसरी ट्रेन है, जिसमें आज मैं हूँ, और दिल्ली से तीसरी गाड़ी पकड़नी है, फिर हमेशा के लिए आज़ाद" आज़ाद?? लेकिन किस तरह की कैद से?? मुझे फिर जिज्ञासा हुई किस कैद में थी ये कमसिन अल्हड़ सी लड़की.. लड़की बोली, उसी कैद में थी, जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे शादी कर लो, जब जैसा कहे, वैसा करो। मैं घर से भाग चुकी हूं.. मुझे ताज्जुब हुआ, मगर अपने ताज्जुब को छुपाते हुए मैंने हंसते हुए पूछा "अकेली भाग रही हैं आप? आपके साथ कोई नजर नहीं आ रहा? " वो बोली "अकेली नहीं, साथ में है कोई" कौन? मेरे प्रश्न खत्म नहीं हो रहे थे दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो जनाब मिलेंगे, और उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे.. ओह्ह, तो ये प्यार का मामला है। उसने कहा "जी" मैंने उसे बताया कि 'मैंने भी लव मैरिज की है।' ये बात सुनकर वो खुश हुई, बोली "वाओ, कैसे कब?" लव मैरिज की बात सुनकर वो मुझसे बात करने में रुचि लेने लगी मैंने कहा "कब कैसे कहाँ? वो मैं बाद में बताऊंगा, पहले आप बताओ आपके घर में कौन कौन है? उसने होशियारी बरतते हुए कहा " वो मैं आपको क्यों बताऊं? मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा माँ भाई बहन, या हो सकता है भाई ना हो सिर्फ बहनें हो, या ये भी हो सकता है कि बहने ना हो और 2-4 गुस्सा करने वाले बड़े भाई हो" मतलब मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता "मैंने काउंटर मारा" वो बोली, 'कुछ भी नाम हो सकता है मेरा, टीना, मीना, रीना, कुछ भी' बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे टॉफी दी जैसे छोटे बच्चे देते हैं क्लास में, बोली आज मेरा बर्थडे है। मैंने उसकी हथेली से टॉफी उठाते बधाई दी और पूछा "कितने साल की हुई हो?" वो बोली "18" "मतलब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी" वो "हंसी" कुछ ही देर में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों, जैसे बहुत पहले से जानते हो एक दूसरे को.. मैंने उसे बताया कि "मेरी उम्र 35 साल है, यानि 17 साल बड़ा हूं" उसने चुटकी लेते हुए कहा "लग तो नहीं रहे हो" मैं मुस्कुरा दिया मैंने उससे पूछा "तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार देखी" खुद की तारीफ सूनकर वो खुश हुई, बोली "मुझे उन जनाब ने, मेरे लवर ने पहले से ही समझा दिया था कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल मत सोचना, बिल्कुल अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ" मैंने फिर चुटकी ली, कहा "उसने तुम्हें मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?" उसने हंसकर जवाब दिया "नहीं, शायद वो भूल गया होगा ये बताना" मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा " वैसे तुम्हारा बॉय फ्रेंड काफी टैलेंटेड है, उसने किस तरह से तुम्हे अकेले घर से रवाना किया, नई सिम और मोबाइल दिया, तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके, वेरी टैलेंटेड पर्सन" लड़की ने हामी भरी, " बोली बहुत टैलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं" मैंने उसे बताया कि "मेरी शादी को 10 साल हुए हैं, एक बेटी है 8 साल की और एक बेटा 1 साल का, ये देखो उनकी तस्वीर" मेरे फोन पर बच्चों की तस्वीर देखकर उसके मुंह से निकल गया "सो क्यूट" मैंने उसे बताया कि "ये जब पैदा हुई, तब मैं कुवैत में था, एक पेट्रो कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब थी मेरी, बहुत अच्छी सेलेरी थी.. फिर कुछ महीनों बाद मैंने वो जॉब छोड़ दी, और अपने ही कस्बे में काम करने लगा।" लड़की ने पूछा जॉब क्यों छोड़ी?? मैंने कहा "बच्ची को पहली बार गोद में उठाया तो ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया मेरे हाथों में है, 30 दिन की छुट्टी पर घर आया था, वापस जाना था, लेकिन जा ना सका। इधर बच्ची का बचपन खर्च होता रहे उधर मैं पूरी दुनिया कमा लूं, तब भी घाटे का सौदा है। मेरी दो टके की नौकरी, बचपन उसका लाखों का.." उसने पूछा "क्या बीवी बच्चों को साथ नहीं ले जा सकते थे वहाँ?" मैंने कहा "काफी टेक्निकल मामलों से गुजरकर एक लंबे समय के बाद रख सकते हैं, उस वक्त ये मुमकिन नहीं था.. मुझे दोनों में से एक को चुनना था, आलीशान रहन सहन के साथ नौकरी या परिवार.. मैंने परिवार चुना अपनी बेटी को बड़ा होते देखने के लिए। मैं कुवैत वापस गया था, लेकिन अपना इस्तीफा देकर लौट आया।" लड़की ने कहा "वेरी इम्प्रेसिव" मैं मुस्कुराकर खिड़की की तरफ देखने लगा लड़की ने पूछा "अच्छा आपने तो लव मैरिज की थी न, फिर आप भागकर कहाँ गए?? कैसे रहे और कैसे गुजरा वो वक्त?? उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम छोटी बहन सी। मैंने उसे बताया कि हमने भागकर शादी नहीं की, और ये भी है कि उसके पापा ने मुझे पहली नजर में सख्ती से रिजेक्ट कर दिया था।" उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?? लड़की ने पूछा मैंने कहा "रिजेक्ट करने का कुछ भी कारण हो सकता है, मेरी जाति, मेरा काम,,घर परिवार, "बिल्कुल सही", लड़की ने सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा "फिर आपने क्या किया?" मैंने कहा "मैंने कुछ नहीं किया,उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया वहीं से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। खुशबू ने मुझे कहा कि भाग चलते हैं, मेरी वाइफ का नाम खुशबू है..मैंने दो टूक मना कर दिया। वो दो दिन तक लगातार जोर देती रही, कि भाग चलते हैं। मैं मना करता रहा.. मैंने उसे समझाया कि "भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त पर पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की के पूरे कुल की इज्ज़त धुल जाती है। भगाने वाला लड़का उसके दोस्तों में हीरो माना जाता है, लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है, वो कुल्टा कहलाती है, मुहल्ले के लड़के उसे चालू कहते है । बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर 60 साल की वृद्धा भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता। मैं मानता हूँ कि लड़का लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन हमारे समाज में है तो यही , ये नजरिया गलत है, मगर सामाजिक नजरिया यही है, वो अपने नीचे का होंठ दांतों तले पीसने लगी, उसने पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट पिया। मैंने कहा अगर मैं उस दिन उसे भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती, इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई कि ऐसा काम करूँ.. मैं जिससे प्रेम करूँ, उसके माँ बाप मेरे माँ बाप के समान ही है, चाहे शादी ना हो, तो ना हो। कुछ पल के लिए वो सोच में पड़ गई , लेकिन मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी, उसने पूछा "फिर आपकी शादी कैसे हुई??? मैंने बताया कि " खुशबू की सगाई कहीं और कर दी गई थी। धीरे धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। खुशबू और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे जैसे शादी नजदीक आने लगी, उन लोगों की डिमांड बढ़ने लगी" डिमांड मतलब 'लड़की ने पूछा' डिमांड का एक ही मतलब होता है, दहेज की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को नेकलेस दो वगैरह वगैरह, बोले हमारे यहाँ रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था। वो सगाई मैंने तुड़वा डाली..इसलिए नहीं की सिर्फ मेरी शादी उससे हो जाये, बल्कि ऐसे लालची लोगों में खुशबू कभी खुश नहीं रह सकती थी । ना उसका परिवार, फिर किसी तरह घरवालों को समझा बुझा कर मैं फ्रंट पर आ गया और हमारी शादी हो गई। ये सब किस्मत की बात थी.. लड़की बोली "चलो अच्छा हुआ आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों में फंस जाती" मैंने कहा "जरूरी नहीं कि माता पिता का फैसला हमेशा सही हो, और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसन्द सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है..काम की बात यहाँ ये है कि कौन ज्यादा वफादार है।" लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और मैंने भी.. लड़की ने तर्क दिया कि "हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए" मैंने कहा "फैसला ऐसा हो जो दोनों का हो, बच्चों और माता पिता दोनों की सहमति, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हें इश्क का असली मतलब पता है अभी" उसने पूछा "क्या है इश्क़ का सही अर्थ?" मैंने कहा "तुम इश्क में हो, तुम अपना सबकुछ छोड़कर चली आई ये सच्चा इश्क़ है, तुमने दिमाग पर जोर नहीं दिया ये इश्क है, फायदा नुकसान नहीं सोचा ये इश्क है...तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल खाली था, उस खाली जगह में इश्क का फितूर भर दिया गया। जिन जनाब ने इश्क को भरा क्या वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी हीरोगिरी में है। जो इश्क में होता है वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता.. कोई कहे मैं आशिक हुँ, और वो शातिर भी हो ये नामुमकिन है। मजनूं इश्क में पागल हो गया था, लोग पत्थर मारते थे उसे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई। उसे दुनिया मजनूं के नाम से जानती है, जबकि उसका असली नाम कैस था, जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। वो शातिर होता तो कैस से मजनूं ना बन पाता। फरहाद ने शीरीं के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो इश्क़ था। इश्क़ में कोई फकीर हो गया, कोई जोगी हो गया, किसी मांझी ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया..किसी ने अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया..चालाकी नहीं की । लालच ,हवस और हासिल करने का नाम इश्क़ नहीं है.. इश्क समर्पण करने को कहते हैं, जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे तुमने किया, लेकिन तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में लालच की मिलावट हो गई लकड़ी अचानक खो सी गई.. उसकी खिलख़िलाहट और खिलंदड़ापन एकदम से खमोशी में बदल गया.. मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा बोल गया, फिर भी मैंने जारी रखा, मैंने कहा " प्यार तुम्हारे पापा तुमसे करते हैं, कुछ दिनों बाद उनका वजन आधा हो जाएगा, तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने आशिक को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर फर्क पड़ता, ना दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, अपने लिए अच्छा सोच लेता। आजकल गली मोहल्ले के हर तीसरे लौंडे लपाटे को जो इश्क हो जाता है, वो इश्क नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर..और कुछ नहीं। लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है। मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मन की इंद्री उसकी तरफ थी। थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ पहुँच गई.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, देखा, सिम एक्टिवेट हो चुकी थी.. उसने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और फाड़ दिया.. मुझे कहा एक कॉल करना है, मैंने मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा "सोरी पापा, और सिसक सिसक कर रोने लगी, सामने से पिता भी फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा पिताजी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं घर आ रही हूँ..दोनों तरफ से भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा" हम ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दिया कहानी को अंत तक पढ़ने का धन्यवाद। देश की सभी बेटियों को समर्पित- ये मेरा दावा है माता पिता से ज्यादा तुम्हें दुनिया मे कोई प्यार नहीं करता। कहानी पढ़कर, शेयर अवश्य कीजिएगा, शायद कोई परिवार, कोई बेटी और उनका भविष्य इससे बच जाए🙏🏻 प्रेषक-भारत का हर पिता अज्ञात